Saturday 29 August, 2009

Switzerland-5: Lucerne

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अगले दिन हमको नुरेम्बर्ग वापस लौटना था। शाम को फ़्लाइट थी। हमने प्लान किया की सुबह होटल खाली करके लुसर्न चले जाते हैं। फ़िर लुसर्न घूम के ज़ूरिक एअरपोर्ट के लिए ट्रेन पकड़ लेते हैं। तो हम चल पड़े होटल से, सुबह सुबह ढेर सारा नाश्ता कर के। पहले तो हमने ट्रेन पकड़ी मेरिरिन्गेन के लिए, और फिर हमने पकड़ी गोल्डन पास एक्सप्रेस जिससे हम लुसर्न तक गए! यह एक बहुत सुंदर सी ट्रेन है (बाकी भी सुंदर ही होती हैं, पर यह गोल्डन रंग की थी).  पर इसका नाम गोल्डन इसलिए है की वोह बहुत सुंदर रास्ते से होकर गुज़रती है, और यह गलत नहीं था। हर नज़ारा बस देखते ही रह जाते थे. यह ट्रेन पहाडियों के ऊपर भी चढ़ जाती थी।
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इस ट्रेन में समय का पता ही नहीं चला, लुसर्न पहुच गए। लुसर्न एक बड़ा शहर है। टेहेलने घूमने को बहुत कुछ था। पहले हम चैपेल ब्रिज (http://en.wikipedia.org/wiki/Chapel_Bridge) देखने गए। यह एक लकड़ी का पुल है जो ऊपर से भी ढका हुआ है। यह पुल लुसर्न झील के दो किनारों को जोड़ता है। देखने में अलग सा है और इसके अन्दर पेंटिंग बनी हुई है। पुल के दोनों तरफ़ लाइन से फूल लगे हुए हैं जो इसकी सुन्दरता को बढ़ा देते हैं।
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फिर हम नाव से झील की सैर पे गए। यह क्रूज़ पूरे झील की सैर करता है जिससे की शहर की सारी अच्छी जगहें देख सकें। तो हमने नाव की अच्छी सैर की जो लगभग एक घंटे की थी। फिर वापस किनारे पे आए जहाँ कोई मेला जैसा लगा था। वहां हम समोसा खाए। जी हाँ, स्विट्जरलैंड में समोसा! एक इंडियन आदमी की दूकान थी :) ।
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फिर हमें शेर का स्मारक (http://en.wikipedia.org/wiki/Lion_Monument) देखना था। खोजने में थोड़ा टाइम लगा क्योंकि यह झील से थोड़ा दूर था और मुझे रास्ता नहीं पता था. यह एक मरते हुए शेर की मूर्ती है।  यह स्मारक स्विस गार्ड की याद में बनाया गया था जो १७९२ में फ्रांस में शहीद हुए थे। इसके बारे में मैं कुछ नहीं लिखूंगा, यह देखने वाली चीज़ है।
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इसके बाद हम स्टेशन वापस लौटे। रास्ते में खाना खाया और मेरी पसंदीदा Starbucks काफ़ी पी। ट्रेन लगी हुई थी। हम अच्छी सी सीट खोज कर बैठ गए। कई ट्रेनें डबल-डेक्कर होती हैं। मुझे ऊपर वाले डेक की सीट पसंद आती है क्योंकि अच्छा दीखता है। इसी ट्रेन से हम एअरपोर्ट पहुँच गए। एअरपोर्ट पे मैंने स्विस चॉकलेट खरीदा। प्लेन पकड़कर रात तक हम नुरेम्बर्ग में अपने होटल पहुच गए। तीन दिन स्विट्जरलैंड में कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला। आज भी सपने जैसा लगता है।
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Posted via email from मेरे संस्मरण

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