Sunday 16 August, 2009

Switzerland-2: Jungfrau

रिग्गेनबेर्ग में बस से उतरे तो सड़क के एक तरफ़ पहाडियां और दूसरी तरफ़ झील थी। बीच की जगह में प्यारा सा गाँव। हम लोग तो बस नज़ारे देखते रह जा रहे थे। मैंने इन्टरनेट से इस इलाके का नक्शा प्रिंट कर लिया था तो रास्ता पता था। नीचे झील की तरफ़ जाते हुए रास्ते पेहम बढ़ गए। रास्ते में एक चर्च था प्यारा सा। उसके आगे नीचे जाने पे झील से लगा हुआ हमारा होटल सीबेर्ग
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हम लोग फ्रेश होकर तुंरत आगे घूमने चल दिए। अभी हम जितना उतरे थे फ़िर अब उतना ही चढ़ना पड़ रहा था। बस स्टाप पहुचे तो बस निकल चुकी थी। तो हम स्टेशन की ओर गए। यहाँ पे आने जाने की कोई दिक्कत नही होती। हर गाँव कसबे तक ट्रेन जाती है। स्टेशन पहुचे तो वहां हम अकेले थे। एक दम साफ़ सुथरा. टीटी तक नही था। सिर्फ़ स्विस रेलवे की ट्रेडमार्क घड़ी की आवाज़ आ रही थी. एक बार को लगा की यह स्टेशन बंद है, कोई ट्रेन नही आती। पार तभी एक जगमगाती लोकल ट्रेन आ पहुची।
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Jungfrau
ट्रेन से हम इन्टर्लाकेन  पहुचे। वहां से हमको युंगफ़्राउ जाना था। युंगफ़्राउ यूरोप की सबसे ऊँची पहाड़ी है। इसके ऊपर तक जाने के लिए ट्रेन चलती है। इसकी ऊंचाई ३४५४ मीटर है। ३ ट्रेन बदल कर जाना पड़ता है, और इसका अलग से टिकेट लेना पड़ता है। आखिरी ट्रेन तो बिल्कुल खड़ी चढाई पे चढ़ती है। ठण्ड बहुत तेज़ी से बढती है। एकदम ऊपर पहुचने पे बर्फ से सब ढका हुआ होता है। इतने ऊपर तक ट्रेन चलाना इंजीनियरिंग की एक मिसाल है।
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ऊपर जाते समय कुछ जगह पे पहाड़ खोदकर स्टेशन बनाये हुए हैं जहाँ से ग्लेशियर देखा जा सकता है। सबसे ऊपर वाले स्टेशन पे रेस्तरां और दुकाने हैं। एक इंडियन रेस्तरां भी है! स्टेशन air-conditioned है। पार वहां से निकल कर ग्लेशियर पे जा सकते थे। उस दिन मौसम अच्छा नही था तो हम ग्लेशियर पे नही जा सके। बस थोड़ा बर्फ से खेले। बहुत तेज़ हवा थी तो मैं भी अन्दर आ गए। बदली थी और हम बादलों के बीच थे! स्टेशन पे एक आइस पैलेस भी था। इस महल में सब कुछ बर्फ का था... दीवारें, फर्श, और मूर्तियाँ थी। बर्फ की मूर्तियाँ सबसे अच्छी थी। यहाँ पे दुकानों से हमने थोड़े गिफ्ट लिए, ख़ास तौर पे घंटी! (DDLJ याद है?)
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लौटते समय बारिश होने लगी और हम और नही घूम पाए। नीचे इन्टर्लाकेन में आकर हमने डिनर किया और फ़िर होटल की और चल दिए। बढ़िया ठण्ड हो रही थी। होटल पर हम झील के किनारे कॉफी पिए. बहुत सुंदर नज़ारा था.
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Posted via email from मेरे संस्मरण

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